
छुरा गरियाबंद भूपेंद्र गोस्वामी आपकी आवाज संपर्क सूत्र=8815207296
अभी से देश का राजनीतिक पारा धीरे-धीरे चढ़ता जा रहा है। सत्ताधारी पार्टी और विपक्षी पार्टी लगातार अपनी – अपनी राजनीतिक ताकत बढ़ाने में लगे हैं। सभी राजनीतिक दल अपने – अपने पुराने गिले शिकवे भुलाकर अपने – अपने राजनीतिक सुविधानुसार गठबंधन से जुड़ रहे हैं। एक प्रकार से प्रतिस्पर्धा चल रही है कि किस गठबंधन में कितने दल हैं। कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए का कल नया नामकरण हुआ, जिसे इंडिया नाम दिया गया है। वहीं भाजपा नेतृत्व वाली गठबंधन एनडीए ही कहलायेगा। बस दोनों गठबंधनों के सहयोगियों में फर्क आएगा।कल तक जो यूपीए के साथी थे उनमें से कुछ एनडीए में आ गए और जो एनडीए में थे वे इंडिया के हो गए। राजनीति में संख्या बल का बड़ा महत्व होता है। इस लिहाज से देखें तो एनडीए में छत्तीस और इंडिया में छब्बीस दल हैं। देखना दिलचस्प होगा कि चुनाव आते – आते और कितने दल इधर से उधर होते हैं। इंडिया के सामने आने वाले दिनों में सबसे बड़ी चुनौती नेतृत्व को लेकर आएगी।कल तक यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी सर्वमान्य नेता थीं। लेकिन इंडिया में किसी एक नेता को चुन पाना मुश्किल हो सकता है। हो सकता है इंडिया सामूहिक नेतृत्व की बात करें और सरकार बनाने की स्थिति में नेतृत्व पर चर्चा करें। यही कारण है कि बैंगलोर में बैठक के बाद कहा गया कि ग्यारह सदस्यों की कमेटी बनाई जाएगी। मतलब साफ है कि कोई एक का नेतृत्व नहीं होगा। एक कोर कमेटी होगी जो मिलकर फैसला करेगी। इसके उलट एनडीए में नेतृत्व को लेकर को संकट नहीं है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इनके सर्वमान्य नेता हैं। और उनके नेतृत्व में ही 2024 का आम चुनाव लडा जाएगा।सीट बंटवारे को लेकर दोनों गठबंधनों में खटपट हो सकता है। देखना होगा कि बिहार, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों में बीजेपी अपने सहयोगियों को कितने सीटें देती हैं वहीं बंगाल, झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में सहयोगी दल कांग्रेस को कितने सीटें देती है। स्वाभाविक है कि भाजपा – कांग्रेस जितना ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ेंगी उतना ज्यादा फायदे में रहेगी।
डॉ. भूपेंद्र कुमार साहू
राजनीतिक विश्लेषक
रायपुर छत्तीसगढ़